दुर्ग।बाबा रामदेव मंदिर, गंजपारा, दुर्ग में श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन आचार्य वीरेंद्र महाराज जी साजा वाले ने श्री कृष्ण द्वारा पूतना वध, कृष्ण बाल चरित्र, माखन चोरी लीला, दामोदर लीला तथा गोवर्धन की पूजा आदि की कथाओं का वर्णन किया। आचार्य जी ने कहा कि भागवत कलयुग में आत्म कल्याण तथा पित्र कल्याण का सबसे बड़ा यज्ञ है। आचार्य जी ने आज सभी भक्तों को बांकेबिहारीजी महाराज ने पंचम दिवस की कथा श्रवण कराई गई, जिसमे महाराज श्री ने कहा धनवान व्यक्ति वही है जो अपने तन, मन, धन से सेवा भक्ति करे वही आज के समय में धनवान व्यक्ति है। परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम के द्वारा ही संभव हो सकती है। पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए महाराज ने बताया कि पूतना राक्षसी ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी। श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतना का वध कर उसका कल्याण किया। माता यशोदा जब भगवान श्री कृष्ण को पूतना के वक्षस्थल से उठाकर लाती है उसके बाद पंचगव्य गाय के गोब, गोमूत्र से भगवान को स्नान कराती है। सभी को गौ माता की सेवा, गायत्री का जाप और गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए। गाय की सेवा से 33 करोड़ (33 कोटि) देवी देवताओं की सेवा हो जाती है। भगवान व्रजरज का सेवन करके यह दिखला रहे हैं कि जिन भक्तों ने मुझे अपनी सारी भावनाएं व कर्म समर्पित कर रखें हैं वे मेरे कितने प्रिय हैं। भगवान स्वयं अपने भक्तों की चरणरज मुख के द्वारा हृदय में धारण करते हैं। पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये हैं। इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सकें। गोपबालकों ने जाकर यशोदामाता से शिकायत कर दी–’मां तेरे लाला ने माटी खाई है यशोदामाता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयीं। ‘अच्छा खोल मुख।’ माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया। श्रीकृष्ण के मुख खोलते ही यशोदाजी ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। आकाश, दिशाएं, पहाड़, द्वीप, समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, बहने वाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्णज्योतिर्मण्डल, जल, तेज अर्थात प्रकृति, महतत्त्व, अहंकार, देवगण, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, त्रिगुण, जीव, काल, कर्म, प्रारब्ध आदि तत्त्व भी मूर्त दीखने लगे। पूरा त्रिभुवन है, उसमें जम्बूद्वीप है, उसमें भारतवर्ष है, और उसमें यहब्रज, ब्रज में नन्दबाबा का घर, घर में भी यशोदा और वह भी श्री कृष्ण का हाथ पकड़े। बड़ा विस्मय हुआ माता को। श्री कृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्त्व ही पहचान लिया है। श्री कृष्ण ने सोचा यदि मैया को यह ज्ञान बना रहता है तो हो चुकी बाललीला, फिर तो वह मेरी नारायण के रूप में पूजा करेगी। न तो अपनी गोद में बैठायेगी, न दूध पिलायेगी और न मारेगी। जिस उद्देश्य के लिए मैं बालक बना वह तो पूरा होगा ही नहीं। यशोदा माता तुरन्त उस घटना को भूल गयीं।
महाराज ने कहा कि आज कल की युवा पीढ़ी अपने धर्म अपने भगवान को नही मानते है, लेकिन तुम अपने धर्म को जानना चाहते हो तो पहले अपने धर्म को जानने के लिए गीता, भागवत ,रामायण पढ़ो तो, तुम नहीं तुम्हारी आने वाली पीढ़ी भी संस्कारी हो जायेगी। ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा छोडकर गिर्राज जी की पूजा शुरू कर दी तो इंद्र ने कुपित होकर ब्रजवासियों पर मूसलाधार बारिश की, तब कृष्ण भगवान ने गिर्राज को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की और इंद्र का मान मर्दन किया। तब इंद्र को भगवान की सत्ता का अहसास हुआ और इंद्र ने भगवान से क्षमा मांगी व कहा हे प्रभु मैं भूल गया था की मेरे पास जो कुछ भी है वो सब कुछ आप का ही दिया है कथा में राधे कृष्ण गोविंद गोवर्धन पूजा की गई । इस दौरान गोवर्धन की पूजा करते हुए 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाकर प्रसादी का वितरण कराया। साथ ही साथ मटकी फोड़ कार्यक्रम भी किया गया..
आज की कथा में मुख्य यजमान श्रीमती तारा रमण पुरोहित परिवार एवं योगेन्द्र शर्मा बंटी, राधेश्याम शर्मा, प्रहलाद रूंगटा, राजेन्द्र शर्मा, पायल जैन नवकार परिसर, राधेश्याम भूतड़ा, राहुल शर्मा, मयंक शर्मा, जगदीश तापड़िया, राम राठी, प्रवीण पींचा, गौरव बजाज, शकुन देवी दुबे, चंदादेवी शर्मा, दमयंती सेन, प्रभा दुबे, नीलू पंडा, प्रभा मिश्रा, सुहागरानी गुप्ता, चंदा शर्मा, मिथला शर्मा, मधु सोनी, प्रेमलता मिश्रा, अम्बिका पण्ड्या, किरण शर्मा, सारिका शर्मा, कविता जोशी, मनोज भूतड़ा, राम राठी, संजय शर्मा, ऋषि गुप्ता, विक्की शर्मा, दिलीप भूतड़ा, प्रमोद जोशी, मनीष मिसर, राजाराम जलतारे, कृतज्ञ शर्मा, नमन खण्डेलवाल, एवं सैकड़ो धर्मप्रेमी उपस्थित हुए।