सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के मेन गेट के सामने चौराहे, जिसमें भारत और सोवियत संघ की मित्रता और सहयोग के स्मारक-स्तंभ स्थापित है का सौंदर्यीकरण एवं चौराहे का उन्नयन बीएसपी प्रबंधन द्वारा किया जा रहा है। इस चौराहे के घेरे को सभी तरफ से 1.5 मीटर घटाई जायेगी, इससे आवागमन सुगम होने के साथ-साथ दुर्घटना की आशंकाएं भी न्यूनतम हो जायेगी। इस स्मारक-स्तंभ के चारों तरफ चौराहे की चौड़ाई को कुल 3 मीटर कम की जायेगी। संयंत्र के मुख्य गेट के सामने होने के कारण इसका अनुरक्षण और सौंदर्यीकरण किया जाना प्रस्तावित था, जिसका कार्य 04 जुलाई 2024 से प्रारंभ हो चुका है।
इस स्मारक-स्तंभ के चारों तरफ लगे लोहे की रेलिंग को हटाया जायेगा और फूलों की लगी क्यारियों का भी सौंदर्यीकरण किया जायेगा। इनकी सुंदरता बढ़ाने के लिए आवश्यक रंग-रोगन किया जायेगा। इस कायाकल्प के अंतर्गत सड़क सुरक्षा हेतु चौराहे के आसपास की डैमेज हो चुकी सड़कों की मरम्मत और रिकारपेटिंग के कार्य किया जायेगा। इसके चारों ओर फेन्सिंग के अंदर आकर्षक पौधे रोपे जायेंगे एवं फूलों की क्यारियों को भी सजाया जायेगा। इस कायाकल्प से इसे और भी आकर्षक स्वरूप दिया जा रहा है। भिलाई इस्पात संयंत्र, इस्पात नगरी के सौंदर्यीकरण के लिए इन दिनों कई परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है। इन परियोजनाओं के तहत, सड़कों की मरम्मत एवं चौकों के जीर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि भिलाई इस्पात संयंत्र शहर के सौंदर्यीकरण और अपनी टाउनशिप को साफ, स्वच्छ और सुंदर बनाए रखने के लिए निरन्तर प्रयास करता रहता है।
वैसे तो भिलाई स्वयं अपने आप में भारत- सोवियत संघ की मित्रता का प्रतीक है लेकिन यहां कई ऐसे स्मारक हैं, जिन्हें दोनों देशों की दोस्ती की यादगार के तौर पर बनाया गया था। ऐसे स्मारकों में सबसे पहले और एकमात्र प्रतीक स्तंभ (ओबेलिस्क) की आधारशिला 26 फरवरी 1961 को भिलाई दौरे पर आए सोवियत संघ मंत्रिपरिषद के उपाध्यक्ष श्री अलेक्सेई निकोलाई कोसिजिन ने रखी थी। कोसिजिन ने भिलाई इस्पात संयंत्र के मेनगेट के सामने, भारत-रूस मैत्री के प्रतीक स्तंभ (ओबेलिस्क) की आधारशिला रखी थी। इस दौरान, सोवियत संघ के विदेश आर्थिक मामलों की समिति के अध्यक्ष श्री एस ए स्कचकोव, भारत में सोवियत संघ के राजदूत श्री एस दत्त, भिलाई इस्पात संयंत्र के चीफ इंजीनियर श्री पुरतेज सिंह और एक्जीक्युटिव इंजीनियर श्री ताराचंद हेमचंद वाच्छानी सहित कई प्रमुख लोग मौजूद थे। यह स्मारक साल भर में बन कर तैयार हुआ और इसका लोकार्पण 23 फरवरी 1962 को भारत में सोवियत संघ के राजदूत श्री इवान अलेक्सांद्रोविच बेनेडिक्टोव ने किया था। इस अवसर को रेखांकित करते हुए बेनेडिक्टोव ने भारत-सोवियत मैत्री के 10 साल पूर्ण होने के अवसर पर प्रकाशित, स्मारिका में अपने संदेश में कहा ‘भारतीय और सोवियत संघ की जनता का जीवंत प्रतीक है भिलाई। मुझे भिलाई में भारत-रूस मैत्री के प्रतीक स्तंभ (ओबेलिस्क) का लोकार्पण करते हुए बेहद गर्व का अनुभव हुआ’। स्तंभ के एक तरफ सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री खुश्चेव की पंक्ति उद्धृत है ‘भारत-रूस की मैत्री भिलाई के इस्पात की तरह मजबूत हो’। तो दूसरी तरफ तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पंक्ति उद्धृत है ‘भिलाई भारत के भविष्य का शुभ सकून व प्रतीक है’।
यह स्मारक-स्तंभ रूस और भारत के बीच इस्पात उद्योग के निर्माण कार्य में आर्थिक और तकनीकी सहयोग का प्रतीक है। भिलाई में यह स्मारक-स्तंभ, भारत और सोवियत संघ के लोगों के बीच लंबे समय से चली आ रही मित्रता के मजबूत कदम और दो देशों के संयुक्त प्रयासों का सूचक है। आज इसी मित्रता और सौहार्दपूर्ण सहयोग की वजह से भिलाई इस्पात संयंत्र न केवल भारत का बल्कि पूरे एशिया का सबसे बड़ा इस्पात संयंत्र बन चुका है।
यूएसएसआर (पूर्व सोवियत संघ) के सहयोग से भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना हेतु 1955 में एग्रीमेंट साइन किया गया था। इस्पात संयंत्र के लिए भिलाई को चुनने का मुख्य कारण स्टील निर्माण के लिए लगने वाले रॉ मटेरियल्स का आस-पास के क्षेत्रों में आसानी से मिलना था। भिलाई, एक छोटा सा गाँव, जिसे जिले की सीमा से परे शायद ही कोई जानता रहा हो, 14 मार्च, 1956 को अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभर कर आया, जब इसे अंततः एक एकीकृत लौह और इस्पात संयंत्र के लिए स्थल के रूप में चुना गया। अपनी तकनीकी और वित्तीय सहायता से यह भिलाई देश में आज पहले स्थान पर स्थापित हो चुका है और अपने नित नए कीर्तिमान से देश के विकास में सहायक है।