जयपुर । राजस्थान में कांग्रेस और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का एक ही मकसद है, किसी तरह सत्ता में फिर से वापस आना हैं। इसके लिए उन्होंने सारे दांव चल दिए हैं। हो सकता है कांग्रेस चुनाव से पहले और कोई तुरुप का पत्ता चल दे, लेकिन कांग्रेस के लिए राजस्थान में सरकार को रिपीट करवाना इतना आसान नहीं हैं। चंद होर्डिंग्स, विज्ञापन और मीडिया मैनेजमेंट के द्वारा हवा बनाई जा सकती है, लेकिन बारिश नहीं करवा सकती है।
युद्ध और चुनाव जीतने के लिए पूर्व राजाओं, और दुनियाभर के नेताओं ने हर तरह की रणनीति और साजिश का इस्तेमाल किया, लेकिन वे अपनी सत्ता नहीं बचा पाए। कुछ राजाओं और नेताओं ने कामयाबी हासिल की, लेकिन सत्ता स्थायी नहीं रह सकी। सीएम गहलोत भी पीएम नरेंद्र मोदी की तरह ही सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं, लेकिन लोकतंत्र में जनता ही तय करती है। इससे हर सत्ता को भय लगा रहता है और इसके लिए नेता उनके दिलों को छूने के लिए कुछ न कुछ करते रहते हैं। वहीं काम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कर रहे हैं।
राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा तोड़ने के लिए कांग्रेस व गहलोत पूरी ताकत लगा रहे हैं। लेकिन आंकड़े अब भी भाजपा के पक्ष में हैं। राजनीतिक विशेलषकों के मुताबिक भाजपा प्रदेश की 200 सीटों में से करीब 28 सीटों पर लगातार चुनाव जीतती आ रही है यानी इस आंकड़े के मुताबिक भाजपा की गिनती 29 से शुरू होगी। प्रदेश की 200 में से 40 से 50 सीटें ऐसी हैं, जहां हर दो बार के बाद विधायक और पार्टी बदल जाती है। इस बार ऐसी सीटों पर भी भाजपा का नंबर है। यानी इस आंकड़े के मुताबिक भाजपा को 41 या 51 से गिनती शुरू करती है।
इस तरह कांग्रेस के पास लगातार जीतने वाली सीटों की संख्या 5 से 7 ही है। हर पांच साल में बदलाव के कारण कांग्रेस के खाते में आने वाली सीटों की संख्या 15 से 20 है। इसकारण कुछ राजनीतिक पंडित आने वाले चुनावों में कांग्रेस के खाते में 25 से 30 सीटें ही आने का अनुमान लगा रहे हैं। अब जो फेक्टर राजस्थान की सियासत में बदलाव ला सकते हैं, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हैं। भाजपा ने राजस्थान की कमान यदि उन्हें नहीं दी तब परंपरागत सियासत के आंकड़ों में बदलाव हो सकता है। इस बार कांग्रेस और सीएम गहलोत तन-मन-धन से पूरी ताकत लगा रहे हैं, इस कारण कुछ बदलाव की संभावना कांग्रेस के लोग जता रहे हैं। जातिगत सियासत हर बार रहती है, जिसका कोई असर फिलहाल दिखाई नहीं देता है। बहरहाल अभी चुनावी सियासत के बीज अंकुरित नहीं हुए हैं। राजस्थान की चुनावी सियासत भी फिलहाल दिल्ली की बाढ़ में गोते लगा रही है।