नई दिल्ली । हिमालय और लद्दाख के क्षेत्र में भूस्वखलन और भूकंप का खतरा दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। दुनिया में जितने भी भू- स्खलन के मामले सामने आ रहे हैं। उसमें अकेले भारत में 30 फ़ीसदी भूस्खलन के मामले सामने आए हैं। इसमें भारत को हर साल 800 करोड रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है। यदि हालात को जल्द नहीं सुधरा गया, तो यह खतरा बड़े पैमाने पर बढ़ने की संभावना वैज्ञानिक जताने लगे हैं।
भू वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय और लद्दाख का क्षेत्र वनस्पति विहीन क्षेत्र है। जिसके कारण इस इलाके में भूस्खलन और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं बड़ी आम होती जा रही हैं।
रिसचर्स के अनुसार भारत के लद्दाख क्षेत्र में एशियाई प्लेटें फाल्ट लाइन से जुड़ी हुई है।उसे टेकटोनिक रूप से स्कीर्य पाया गया है।
केंद्रीय शुष्क अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ महेश गौड़ के अनुसार ट्रांस हिमालय क्षेत्र में टेकटोनिक हलचल के कारण पहाड़ी क्षेत्र में दरारें बढ़ती जा रही हैं। चट्टानों की कमजोर संरचना होने के कारण भूस्वखलन की घटनाएं बढ़ गई है। भूकंप आना भी एक प्राकृतिक घटनाओर प्रकोप होगा।
वैज्ञानिकों के अनुसार पहाड़ काटकर सड़क बनाई जाने के कारण चट्टानों में दरारें आ रही हैं।लद्दाख का एक बड़ा हिस्सा स्थाई बर्फ और ग्लेशियर से ढका हुआ है।ट्रांस हिमालय में वर्षा का सीमित पानी आता है। यहां की चट्टानें कमजोर होती हैं।बादल फटने से कीचड़ का प्रवाह शुरू हो जाता है।
हाल ही में बड़ी तेजी के साथ जलवायु परिवर्तन हो रहा है। जिसके कारण बादल फटने की घटनाएं बढ़ी है।मात्र 20 मिली मीटर की बारिश से पूरा लेह क्षेत्र,पानी और कीचड़ से तरबत्तर हो गया था। लद्दाख में हजारों पर्यटक फंस गए थे। वैज्ञानिकों ने सरकार को सुझाव दिया है, कि लद्दाख के भू-स्वलखन संभावित क्षेत्र के लिए जल विज्ञान और मौसम संबंधी डाटा जुटाना जरूरी है।संभावित खतरों को देखते हुए, इस पर गंभीरता से कार्य करने का सुझाव सरकार को दिया है।