क्या आप जानते हैं कि ऐसी एक फसल है, जिसे उगाने के लिए रासायनिक या जैविक खाद की जरूरत होती है। साथ ही इसके लिए सिंचाई की भी कोई बड़ी आवश्यकता नहीं होती है। इस फसल के बीच की खाली जगहों पर अदरक, हल्दी, या सफेद मूसली जैसी फसलें भी उगाई जा सकती हैं।यह फसल है बांस की, जिसे अब प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पौध रोपण योजनाओं के तहत प्रमुखता से उगाया जा रहा है। आप सोच रहे होंगे कि बांस को इतनी प्राथमिकता क्यों मिल रही है। दरअसल, इसके पीछे विज्ञान और अनुसंधान का बड़ा योगदान है।
बांस की खेती के कई ऐसे गुण सामने आए हैं, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में भी किसानों की आय को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। यह फसल बहुत कम लागत में अधिक लाभ देती है। साथ ही इसकी खेती के लिए खाद या सिंचाई की जरूरत भी नहीं होती।
यह विशेषता बांस को खेती के लिए एक बेहद आकर्षक विकल्प बनाती है। जलवायु परिवर्तन और पारंपरिक खेती में बढ़ती लागत ने किसानों को ऐसे विकल्पों की तलाश में डाल दिया है, जो कम लागत में बेहतर परिणाम दें। अनुसंधान के बाद यह स्पष्ट हुआ है कि बांस की खेती इन परिस्थितियों में लाभकारी साबित हो सकती है।
यह न्यूनतम पानी में भी अच्छे परिणाम देती है और कीट प्रकोप जैसी समस्याएं भी बहुत कम होती हैं। यही कारण है कि बांस की खेती अब तेजी से बढ़ रही है और किसानों के बीच एक नए विकल्प के रूप में उभरी है।बांस की खेती से किसान दोहरे लाभ का आनंद उठा सकते हैं। बांस के पौधों के बीच की खाली जगह पर अदरक, हल्दी, या सफेद मूसली की खेती की जा सकती है, जिससे अतिरिक्त आय होती है।
बांस के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि यह एकमात्र ऐसा पौधा है, जो अपने पूरे जीवनकाल के बाद ही मरता है। इसकी आयु 32 से 48 वर्ष तक होती है। बांस भूमि संरक्षण और मिट्टी के कटाव को रोकने में बहुत प्रभावी है।
इसके अलावा, बांस पर्यावरण के लिए अत्यधिक लाभकारी है। दरअसल, यह वायुमंडल से 66% अधिक कार्बन डाईऑक्साइड सोखता है और ऑक्सीजन का उत्सर्जन भी बढ़ाता है, जिससे वातावरण को शुद्ध रखने में मदद मिलती है।
बांस की बोनी के लिए मार्च का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है। दोमट मिट्टी में बांस की फसल अच्छा प्रदर्शन करती है, जिसका पीएच मान 6.5 से 7.5 होता है। बोनी के पहले सप्ताह में ही बांस के पौधे उगने लगते हैं।यदि 1 हेक्टेयर में 625 पौधे लगाए जाएं, तो पांचवे साल में 3125 पौधे तैयार होते हैं। आठवें साल में यह संख्या बढ़कर 6250 हो सकती है। बांस की जड़, कलम या शाखाओं से भी रोपण किया जा सकता है, जो एक वैकल्पिक तरीका है।
बांस की कोमल टहनियों को जल्दी काटा जाता है, जबकि वे नरम होती हैं, ताकि उनसे स्वादिष्ट एशियाई व्यंजन बनाए जा सकें। बांस के पौधे की पत्तियों से स्वादिष्ट चाय बनाई जा सकती है, जिसका स्वाद ग्रीन टी जैसा होता है और इससे स्वास्थ्य को कई फायदे होते हैं। बांस की खेती ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और रोजगार उत्पन्न करने में अहम योगदान देती है। इसे ‘हरा सोना’ कहा जाता है।